जब शक्ति ध्यान (पावर मेडिटेशन) का प्रयोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए कर रहे हों, तब अपने पुष्टीकरणों (अभिकथन, ऐफ़र्मेषन) में जिस भी रूप में आप ऊर्जा को प्रकट करना चाहते हैं, उसके हर एक पहलू पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, जब आप पैसों के आकर्षण के लिए पुष्टीकरण (अभिकथन, ऐफ़र्मेषन) बना रहे हों, तब अगर पैसों के आकर्षण के लिए ही सिर्फ पुष्टीकरण करते हैं, तब हो सकता है कि पैसे आ जाएं और आपके हाथों में भी पहुंच जाएं लेकिन ये वैसे भी हो सकता है जैसे किसी बैंक टेलर या कैशियर के साथ होता है। या पैसे किसी और के हो सकते हैं या फिर कोई और उन्हें ले सकता है। कुछ समझे? मन सिर्फ वही करता है जैसा उसे करने को कहा जाता है और बातों को विस्तृत रूप से (गहराई से) नही समझता जब तक कि उसे पूरी तरह से बताया न जाए। मन और आभामडंल सबसे आसान रास्ते को ही चनुते हैं और इस कि फिक्र नहीं करते कि वो रास्ता क्या है। इसलिए ये महत्वपूर्ण है कि अपने पुष्टीकरण में कम से कम शब्दों में ही जितना हो सके उतना विशिष्ट हुआ जाए। ऊर्जा बिल्कुल वैसा ही करती है जैसा उसे करने को कहा जाता है।
मैंने जो पुष्टीकरण शामिल किए हैं वे एक बुनियादी मार्गदर्शक (उदाहरण) हैं। आप उनका ही उपयोग कर सकते है या जैसा आप ठीक समझते हों वैसे उन्हें बदल सकते हैं।
एक और उदाहरण वजन घटाने के लिए है। वजन को सिर्फ कम करने के लिए ही पुष्टीकरण (अभिकथन, ऐफ़र्मेषन) करना समझदारी भरा नहीं है। आप ज़रूर कैंसर जैसी किसी बीमारी से अपना वजन कम करना नहीं चाहेंगे। यह पुष्टि करना महत्वूर्ण है कि, " मैं बहुत स्वस्थ तरीके से अतिरिक्त और अनावश्यक शरीर की चर्बी (बौडी फ़ैट) घटा रहा हूँ।" ये बहुत ज़रूरी है।
सभी पुष्टीकरण वास्तविकता में प्रकट होने के लिए सक्षम होने चाहिए। दूसरे शब्दों में, वे सभी भौतिक रूप से होने में संभव होने चाहिए।
पुष्टीकरण हमेशा वर्तमान काल में ही होने चाहिए क्योंकि दिमाग का दायां हिस्सा भविष्य काल के होने वाली चीजों को को नहीं समझता है - जैसे कि, "होगा" कभी नहीं होता है और ना ही मन भविष्य मे होने वाली चीजों को समझता है।
जैसा कि हर कार्य में होता है, आपको ये विश्वास और मर्ज़ी होनी चाहिए कि आप जो चाहते है वो खुद ही हो जायेगा। इच्छा का होना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
जब आप ध्यान करना पूरा कर लेते हैं, चाहे ध्यान किसी भी कारण से किया हो, सब अपने मन से बाहर निकाल दें (भूल जाएँ) ! उसे अपने आप काम करने दें । उसके बारे मे ना सोचे ना ही उस पर ध्यान दें वरना आप उसकी ऊर्जा में दखल दे बैठेंगे।
अपनी ऊर्जा को ज्यादा फैला करके कम ना करें। एक समय पर एक ही समस्या पर काम करें। आपकी ऊर्जा जितनी ज्यादा जगहों पर जाती है उतनी ही कमजोर भी होती जाती है। ऊर्जा को एक लेज़र की तरह निर्देशित करना चाहिए।
एक कंप्यूटर कि तरह ही हम अपने आभामंडल/आत्मा को भी विशेष चीज़ों के लिए प्रोग्राम कर सकते हैं, और जब हम उनसे काम लेने और फल प्राप्त करने में सफल होने लगेंगे तब ये प्रोग्राम स्थाई हो जाएंगे। ये प्रोग्राम तब तक आभामंडल में रहेंगे जब तक हम उन्हे हटा नहीं देते हैं, अगर हम कभी उन्हे हटाना चाहे तो। समय समय पर इन्हें ध्यान और पुष्टीकरणों के माध्यम से दोबारा प्रबलित करने की जरूरत हो सकती है, लेकिन ये आत्मा में बने रहेंगे, यहाँ तक कि भविष्य के जन्मों में भी।
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