आत्मा का भौतिक विज्ञान

1956 में खोजा गया एक उपपरमाण्विक कण है, जिसे न्यूट्रिनो कहा जाता है। अपने अत्यंत छोटे आकार और मायावी व्यवहार के कारण इस कण का अध्ययन (पढ़ना) करना वैज्ञानिकों के लिए कठिन है। माना जाता है कि ब्रह्मांड का 9/10 भाग न्यूट्रिनो और न्यूट्रिनो जैसे कणों से बना है। हालाँकि न्यूट्रिनो का द्रव्यमान (मास) होता है, वे भौतिक पदार्थ से होकर गुजर जाते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि सूर्य से एक न्यूट्रिनो किसी भी चीज से टकराए बिना पृथ्वी से सबसे पास वाले तारे तक की मोटाई के लेड (सीसा) से गुजर सकता है।

 

भौतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान और तंत्रिका विज्ञान (स्नायुशास्त्र) में हाल ही में हुए विकास मानसिक और असाधारण (पैरानॉर्मल) घटनाओं  की समझ में एक अप्रत्याशित सफलता प्रदान करते हैं। हमारे भौतिक शरीर के परमाणुओं में बहुत महीन और तेज़ कंपन करने वाले न्यूट्रिनो और न्यूट्रिनो जैसे कण होते हैं। ये महीन और तेज़ कंपन करने वाले कण आत्मा के पदार्थ की रचना करते हैं, जो हमारे भौतिक शरीर से एक चुंबकीय डोरी से जुड़ी होती है जो मृत्यु के समय डोरी टूट जाती है। जब शरीर घर की तरह कार्य करना बंद कर देता है तो आत्मा शरीर से मुक्त हो जाती है।

 

जब कोई व्यक्ति अपने आप को लगातार शक्ति ध्यान में लगाता है, तो उसके चक्र तेज गति से कंपन करते हैं। यह प्रशिक्षण (अभ्यास), तैयारी और तत्परता लेता है, लेकिन उच्च गति के माध्यम से, प्रकाश की गति के करीब पहुँचने पर, व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार अन्य आयामों तक पहुँच सकता है।

 

मानवता इस समय निचले आयाम में रहती है। इसका बहुत कुछ लेना-देना है हमारी पृथ्वी और अंतरिक्ष में इसके स्थान से । उच्च आयामों में, रंग, आकार, ध्वनियाँ और विचार अधिक विशद (ज्वलंत) होते हैं। कोई दीवारों के पर देख सकता है और सर्वव्यापी की अनुभूति कर सकता है। टेलीपैथी (मानसिक दूरसंचार) बेहद उन्नत होता है और अन्य इंद्रियाँ (सेंस) बहुत अधिक शक्तिशाली और अधिक खुली हो जाती हैं जो कि ज़्यादातर लोगों के अनुभव से परे है।

 

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