अहंकार स्वयं है। "जैसा कि ऊपर, वैसा नीचे," हमें आगे बढ़ने के लिए (उन्नत होने के लिए) एक इकाई के रूप में काम करने की आवश्यकता है। संस्कृत शब्द "योग" का अर्थ है "मिलन।" अपने काम में, एक माध्यम के रूप में मैंने मृत मनुष्यों की कई आत्माओं का आह्वान किया (इन्वोक किया)। सूक्ष्म पर, मृत आत्माएं स्थिर हो जाती हैं और बदलती या विकसित नहीं होती। सूक्ष्म जगत में (एस्ट्रल दुनिया)। आत्मा को आगे बढ़ाने के लिए शारीरिक आत्म की आवश्यकता होती है।
दाहिने हाथ के पथ (right hand path) की शिक्षाओं के कारण, पूर्वी विद्या के कई पालन करने वालों को अपनी शक्तियों का उपयोग करने के बारे में बहुत कम जानकारी है। निस्वार्थता, त्याग, वैराग्य (संन्यास), इनकार (निषेध), भौतिक आत्म की उपेक्षा और अनघता [यौन संबंधों की अनुपस्थिति] की शिक्षा मानवता को किसी भी मन (मानस, दिमाग) की शक्ति तक पहुंचने से रोकने के उद्देश्य से है।
आत्मा को आगे बढ़ाने के लिए शारीरिक आत्म की आवश्यकता होती है। भौतिक स्व (आत्म) पर महारत एक और मामला है। एक माहिर को दर्द को पार करने में सक्षम होना चाहिए। भौतिक आत्म पर महारत और भौतिक आत्म की उपेक्षा दो बहुत अलग चीजें हैं। जब कोई भौतिक आत्म की उपेक्षा करता है, तो वह वियोग (फूट) पैदा करता है। अब इस मामले में योग एक संकल्पना नहीं है। अहंकार और इच्छा के लिए भी ऐसा ही है।
हमें अपनी इच्छाओं को अपने जीवन पर हावी नहीं होने देना चाहिए, लेकिन इच्छा के बिना जीवन ही व्यर्थ (बेमतलब) बन जाता है। हमारी इच्छाएं और अरमान ही हमें विशिष्ट व्यक्ति बनाती हैं, और हमें वह व्यक्तित्व प्रदान करती हैं जो हमारे पास है। इच्छा के बिना, हम स्थिर हो जाते हैं और हमारे पास कुछ भी नहीं होता है। इच्छा हमें प्रेरित करती है और हमारा अहंकार हमारा स्वयं है। स्वयं के आवश्यक हिस्सों को नकार कर हम संघ (मिलन) को तोड़ते हैं। योग या किसी अन्य विद्या का अभ्यास बिना इच्छा के शुरू भी नहीं होता। इच्छा के बिना हमारे पास कुछ भी नहीं है। प्रबल इच्छा, साथ में दृढ़ मन और इच्छाशक्ति ही जादुई कार्यों को सफल बनाती है। जब जीवन शक्ति प्रबल होती है, तो जीने की अत्यंत इच्छा होती है। इच्छा की अनुपस्थिति मृत्यु है। जब हमारे पास कोई इच्छाएं नहीं रह जाती हैं, तो हम जीना बंद कर देते हैं।
हम में से अधिकांश सहमत होंगे, शैतान (सेटन) से मिलने और उनके के साथ एकजुट होने पर, वह हमें एक साथ लाते हैं आध्यात्मिक रूप से। हमें संपूर्णता की अनुभूति होती है जो हमारे पास पहले नहीं थी। लोकप्रिय योग शिक्षाएँ यहाँ केवल हमें शक्ति से दूर रखने के लिए हैं, जैसे कि ईसाई धर्म और अन्य संबंधित धर्मों की सभी शिक्षाएँ। उन्हें नजरअंदाज करें। केवल भौतिक तकनीकों का उपयोग करें।
चक्रों और कुंडलिनी के सक्रियण में कई चरण होते हैं। इनमें से कुछ चरण कामलिप्सा (सेक्स ड्राइव, सम्भोग इच्छा) और लालसा (उत्कट इच्छा) की कमी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुंडलिनी सम्भोग संबंधी है और जब हम शक्ति ध्यान शुरू करते हैं, तो यह ऊर्जा आत्मा के विभिन्न क्षेत्रों में निर्देशित होती है। लोगों ने यह भी बताया है कि कुंडलिनी उत्तेजित होने के बाद अधिक तीव्र ऑर्गेज्म (संभोग सुख) होता है। अधिक बायोइलेक्ट्रिसिटी के साथ ऑर्गेज्म बहुत अधिक तीव्र और आनंददायक होता है। सम्भोग (सेक्स), यदि संभव हो तो, कुंडलिनी जागरण के अतिरिक्त होना चाहिए। कुंडलिनी जीवन शक्ति है और स्वभाव से बहुत सम्भोग संबंधी है। मिस्र में पिरामिडों और मंदिरों की दीवारों पर भित्ति चित्र हैं। ये भित्ति चित्र भगवानों के अपने चक्रों को समायोजित करने के हैं। इस प्रक्रि9या से गुजरते समय पुरुष देवताओं को हमेशा स्तंभन (उन्नत शिश्न, खड़ा लिंग) के साथ दिखाया जाता है।
जीवन शक्ति और कामलिप्सा (सेक्स ड्राइव, सम्भोग इच्छा) समान हैं। सदियों से अनघता (संयम) और आत्म-निषेध के झूठ का प्रचार करते हुए, इन शिक्षाओं ने मानवता को शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से गुलाम बनाए रखा है। जब जीवन शक्ति प्रबल (शक्तिशाली) होती है, तो व्यक्ति को अवसाद, उदासीनता, व्यर्थता (निरर्थकता) या आशाहीन्ता का अनुभव नहीं होता।
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